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कविता

बावरे घन आज मुझको ही बरसने दो

ब्रजराज तिवारी ‘अधीर’


बावरे घन आज मुझको ही बरसने दो,
- कि कल तुम भी बरस लेना।

आज मेरे देवता का प्राण प्यासा है, पिलाने दो,
आँसुओं के अर्ध्य चरणों पर तनिक मुझको चढ़ाने दो,
आज नयनों के मेरे प्याले छलकने दो,
कि कल तुम भी छलक लेना।

आज पुरवैया हवा कुछ गुन-गुनाती है, कि गाती है,
दूर सहमी सी दिशा किसको निरखकर मुस्कराती है,
आज मेरे हाल पर जगको बिहँसने दो,
कि कल तुम भी बिहँस लेना।

बादलों के बीच जैसे बिजलियाँ रह-रह चमकती हैं,
काजलों के बीच वैसे पुतलियाँ रह-रह कलपती हैं,
बावरे मन आज चपला को तड़पने दो,
कि कल तुम भी तड़प लेना।

 


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